--पंडितों के मंत्रोच्चारण के साथ हुई होली दहन
--होली के त्यौहार पर आज भी समाज मे कायम है पुराने रीति-रिवाज
--विश्वहिन्दू परिषद और व्यापार संघ ने किया धुलेटी कार्यक्रम आयोजित
सरुपगंज, सिरोही
माधुराम प्रजापति की रिपोर्ट
सरुपगंज थाना क्षेत्र में रंगों का त्यौहार होली का पर्व शांतिपूर्ण और हर्षोल्लास के साथ मनाया। होली का दहन पारम्परिक तरीके से पंडितों के मंत्रोच्चारण और शुभ मुहूर्त में किया। होली दहन स्थान पर लोगों ने होली दहन का मनोहरम दृश्य देख कर आने वाले अगले वर्ष का शगुन देखा।
विश्वहिन्दू हिन्दू परिषद और सयुंक्त व्यापार महासंघ के तत्वावधान की ओर से दो दिन तक सरुपगंज कस्बे में होली के पवित्र रंगों से धुलेटी कार्यक्रम आयोजित किया गया। विश्वहिन्दू परिषद ने धुलेटी कार्यक्रम का आगाज आदर्श विद्या मंदिर में आयोजित किया गया। विश्वहिन्दू परिषद ने धुलेटी कार्यक्रम माँ भारती को दीप प्रज्ववलित कर शुरुआत की। धुलेटी कार्यक्रम में चांग की थाल पर होली के गीतों से शुरुआत हुई। कार्यक्रम में विश्वहिन्दू परिषद के द्वारा ठंडाई, रंग बिरंगे कलर और नास्ते की व्यवस्था रखी गई। कस्बे के सभी धुलेटी खेलने आये लोगों ने रंग-बिरंगे कलरों से एक दूसरे पर कलर डाले और डीजे की धुन पर धुलेटी खेलने का आनन्द लिया। विश्वहिन्दू परिषद की ओर धुलेटी व डीजे के धुन ओर होली के गीतों से सरुपगंज कस्बे में रैली निकाली। युवाओं और कस्बे वासियो ने धुलेटी का नाच गाने का आनन्द लिया।
इसी प्रकार दूसरे दिन सरुपगंज कस्बे में सयुंक्त व्यापार महासंघ के द्वारा धुलेटी का कार्यक्रम आयोजित किया। अध्यक्ष निरंजन अग्रवाल ने बताया कि सरुपगंज पुलिस चौकी मुनिजी महाराज के प्रांगण में धुलेटी का कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम में नास्ता और रंग बिरंगे कलरों की व्यवस्था की गई। कार्यक्रम डीजे और होली के गीतों से सरुपगंज कस्बे में रैली निकाली। रैली में व्यापारी और कस्बेवासियों ने खूब नाच गान किया। वही सरुपगंज के सभी सयुंक्त व्यापार महासंघ कमेटी सदस्यों ने धुलेटी कार्यक्रम में भाग लेकर एक दूसरे पर रंग बिरंगे कलर डाले। इसी के साथ कस्बे के व्यापारियों ने सरुपगंज कस्बे में रैली निकाली। पुनः रैली मुनिजी महाराज मंदिर जा कर विसर्जन हुई।
होलीका दहन के दूसरे दिन हर समाज मे रीति-रिवाज होते है। समाज मे सदियों से आ रही होली के रीति-रिवाज आज भी देखने को मिलते है। होली दहन की रात्रि में नवजात शिशुओं को ढूंढा ने की प्रथा जो आज भी प्रचलित है। वही होली के दूसरे दिन गोधूलि वेला में होली स्थल पर नवजात शिशुओं को होलिका के तिलक के लिए लाए जाते है। इसी प्रकार ग्रामीण परिवेश में वनजात शिशुओं को होली स्थान पर लाया जाता है शिशुओं को जली हुई होली की परिक्रमा लगा कर होलीका के राख का तिलक और धोक दिया जाता है। इसी प्रकार किसी नवयुवा की नई शादी हुई हो...और उस युवा को दूल्हा बना कर होलिका दहन स्थल पर ला कर जली हुई होली की परिक्रमा लगा कर तिलक लगा कर धोक दी जाती है। इस प्रकार समाज की होली के प्रति रस्म अदा की जाती है। तथा समाज की महिलाएं आरती उतार कर मांगलिक गीत गाती है। होली दहन स्थान पर मेले जैसा माहौल बना रहता है। नाच-गान कर महिलाओं द्वारा मांगलिक जीत गाये जाते है।
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