रिपोटर्स- मिठालाल सुथार
आहोर/जालोर
अधिवक्ता भंवर भादू में ज्ञापन में देश के केंद्र सरकार से विनम्र आग्रह कर कहां की आपके नेतृत्व व आपकी विशेष पहल द्वारा नामीबिया से जो 8 चीते लाये गये हैं उनके भोजन के लिए जो चीतल, हिरण छोड़े गये हैं इसे लेकर हम बिश्नोई समुदाय बेहद आहत हैं। और समुदाय का आक्रोशित होना तार्किक भी है। आप भलीभांति जानते हैं कि गुरू श्री जम्भेश्वरजी भगवान की प्रेरणा से सदियों से वन्यजीवों की रक्षा के खातिर समर्पित रहे बिश्नोई समुदाय के लिए वन्यजीव खासकर हिरण आस्था का एक बड़ा विषय रहा है। हमारे समुदाय के सैकड़ों वीरों ने हिरणों की रक्षा के खातिर शहादत दी है। आप ये भी जानते हैं कि चीतल, हिरण राजस्थान समेत देश-दुनिया के कई हिस्सों में तेजी से विलुप्ति की तरफ जा रहे हैं। देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा जी द्वारा बनाया गया कानून Wild Life (Protection) Act, 1972 भी हिरणों के शिकार पर पाबंदी व इनके संरक्षण की बात करता है।
इन हालातों में आपके आदेशों द्वारा राजगढ़ (मध्य प्रदेश) के चिड़ीखो अभयारण्य से 181 हिरण चीतों के भोजन के लिए कुनो नेशनल पार्क में छोड़े जाने का कदम बहुत ही निंदनीय है। इससे भी निंदनीय यह है कि आपने यह प्रक्रिया जारी रखने के आदेश दे रखे हैं, जैसा कि समाचार माध्यम बता रहे हैं कि आने वाले समय में 1500 से भी ज्यादा हिरण इन 8 चीतों के लिए कुनो नेशनल पार्क में छोड़े जाएंगे।
प्रधानमंत्री जी, एक विषय और है जो हमें व्यथित करता है। 'गाय' भी हमारी आस्था से जुड़ा हुआ प्राणी है। गौमाता को हम बेहद श्रद्धा के साथ पूजनीय मानते हैं। आज हमारी गौमाता संकट में है। लम्पी स्किन बीमारी के चलते देश के कई राज्यों में गौमाताएँ जीवन और मरण के बीच जूझ रही है। आपकी चीते लाने की यह टाइमिंग हमें आहत करती है क्योंकि यही ऊर्जा यदि आप गौमाता की सेवा में लगाते तो सीमित संसाधनों वाली राज्य सरकारों को बड़ा बल मिलता
मेरा संलग्न पत्र के जरिये आपसे बहुत ही विनम्रता के साथ आग्रह है कि हमारी आस्था से जुड़े हिरणों को चीते के भोजन बनाने के आपके निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए। यह निर्णय अवैज्ञानिक है, असंवेदनशील है। मैं और पूरे देश के बिश्नोई समुदाय की तरफ से आपसे आग्रह करता हूं कि इस निर्णय को तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाए।
साथ ही लम्पी स्किन डिजीज को राष्ट्रीय महामारी घोषित किया जाए।


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